Dog Bite: कुत्ते के काटने पर तुरंत लगाएं डिटर्जेंट साबुन, इन चीजों के खाने से करें परहेज, नहीं होगी कोई बीमारी

What to do for dog Bite: डॉगी पालने का शौक किसी को भी हो सकता है लेकिन ऐसा करना कभी-भी खतरनाक भी साबित हो सकता है। यदि आपके घर में बच्‍चे हैं तो आपको बहुत सावधान होने की जरूरत है,क्‍योकि बहुत ज्‍यादा लाड़-प्‍यार से पाले गए कुत्‍ते भी कई बार गुस्‍से में या खेल-कूद में काट लेते हैं या खरोंच देते हैं। जिससे  रेबीज होने का खतरा हो जाता है। इस समय विश्व में रेबीज से होने वाली कुल मौतों में 36 फीसदी मौतें भारत में होती हैं। जिनमें बच्‍चों की संख्‍या ज्‍यादा है क्‍योंकि बच्‍चे कुत्‍तों का आसान शिकार होते हैं। ऐसे में यदि आपके घर भी किसी को कुत्‍ता काट लें तो इन उपायों को अपनाकर इससे होने वाली बीमारियों से बच सकते है। तो चलिए जानते है कि उन उपायों के बारे में…

कुत्‍ता काटने पर सबसे पहले करें ये काम
यदि आपको किसी भी पालतू या आवारा कुत्‍ते ने काट लिया है तो तुरंत उस जगह को धो देना चाहिए। इसके बाद घर में रखे डिटर्जेंट साबुन जैसे कि रिन या सर्फ एक्सेल साबुन को घाव पर रगड़कर इस जगह को अच्‍छी तरह गर्म पानी से साफ कर लेना चाहिए। अगर जख्म बहुत गहरा है तो इस जगह पर पहले साबुन से धोएं और उसके बाद बीटाडिन मलहम लगा लें। ध्यान रखें कि कुत्ता काटने के बाद घाव पर पट्टी नहीं बांधना चाहिए। घाव पर तेल, हल्दी या किसी घरेलू चीज को लगाने से बचें। घाव को धोने के बाद तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

इन चीजों को खाने से बचे  
आपको बता दें कि रेबीज का वायरस तेजी से फैलता है ऐसे में उसकी रोकथाम के लिए वैक्‍सीनेशन के अलावा खानपान भी ठीक रखना जरूरी है। मरीज को इम्‍यूनिटी बढ़ाने वाला खाना जैसे ताजा फल, सब्जियां, जूस, सुपाच्‍य खाना दें। तला-भुना भोजन, चिप्‍स आदि ज्‍यादा मसालेदार चीजें, आलू, टमाटर, धनिया आदि सब्जियां और मीट कुछ दिन खाने के लिए न दें।

रेबीज के इन लक्षणों पर करे गौर
रिपोर्ट के मुताबिक, रेबीज बीमारी के लक्षण संक्रमित पशुओं के काटने के बाद या कुछ दिनों में प्रकट होने लगते हैं। अधिकतर मामलों में रोग के लक्षण प्रकट होने में कई दिनों से लेकर कई वर्षों तक लग जाते हैं। ऐसे जिसको भी कुत्‍ते ने काटा है उसके लक्षणों पर गौर करते रहें।

रेबीज बीमारी का खास लक्षण यह है कि जहां पर पशु ने काटा है वहां मासपेशियों में सनसनाहट होगी। थकावट महसूस करना, सिरदर्द होना, बुखार आना, मांसपेशियों में जकड़न होना, घूमना-फिरना ज्यादा हो जाता है, चिड़चिड़ा होना या उग्र स्वाभाव होना, व्याकुल होना, अजोबो-गरीब विचार आना, कमजोरी होना या लकवा होना, लार व आंसुओं का बनना ज्यादा हो जाता है, तेज रौशनी, आवाज से चिड़न होने लगती है, बोलने में बड़ी तकलीफ होती है, अचानक आक्रमण का धावा बोलना आदि समस्‍याएं देखने को मिलती।

वहीं जब संक्रमण बहुत अधिक हो जाता है और नसों तक पहुंच जाता है तो सभी चीजें या वस्तुएं दो दिखाई देने लगती हैं। मुंह घुमाने में परेशानी होती है। सीना या पेट का घुमाव विचित्र तरीके से होता है। लार ज्यादा बनने लगती है और मुंह में झाग बनने लगते हैं। मुंह से मरीज आवाज करने लगता है।

 

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