savitribai phule struggle story: शिक्षक केवल किताबी ज्ञान ही नहीं बल्कि हमें जीवन में एकता और हर अस्तित्व से पहचान कराने में सहायता करता है। समाज में शिक्षक की बात जब जब की जाती है, तब तब सावित्रीबाई फुले का जिक्र किया जाता है।उन्होंने जाति और लिंग के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव और अनुचित व्यवहार को खत्म करने के लिए काम किया। उन्होंने समाज में शिक्षा की राह को उजागर करते हुए खुद लोगों को पढ़ाना शुरू किया और वह भारत की प्रथम महिला शिक्षिका भी बनी। लेकिन इनके साथ एक और नाम भी शामिल किया जाता है जिनका नाम है फातिमा शेख। यह देश की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका थी। इन्होंने सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर काम किया व दलित और मुस्लिम महिलाओं, बच्चों को शिक्षित करने की शुरुआत की। यही नहीं इन्होंने 1848 में लड़कियों के लिए देश में पहले स्कूल की स्थापना भी की थी।
आपको बता दें कि सावित्रीबाई फुले एक भारतीय समाज सुधारक, शिक्षक और कवियत्री थी। उन्होंने 1854 में काव्या फुले और 1892 में बावन काशी सुबोध रत्नाकर प्रकाशित किया, और “जाओ, शिक्षा प्राप्त करो” नामक एक कविता भी प्रकाशित की जिसमें उन्होंने शिक्षा प्राप्त करके खुद को मुक्त करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया। सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 की रोज महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ था। उनका जन्म स्थान शिरवल से लगभग 15 किमी और पुणे से लगभग 50 किमी दूर था। सावित्रीबाई फुले लक्ष्मी और खांडोजी नेवासे पाटिल की सबसे छोटी बेटी थीं, दोनों ही माली समुदाय से थे। 9 साल की उम्र में उनकी शादी ज्योतिराव फुले से हो गई थी। अपने पति के साथ महाराष्ट्र में उन्होंने भारत में महिलाओं के अधिकारों को बेहतर बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें भारत के नारीवादी आंदोलन का लीडर माना जाता है।
सावित्रीबाई अपनी शादी के समय अनपढ़ थी। उनके पति ज्योतिराव ने सावित्रीबाई और अपनी चहेरी बहन सगुणाबाई क्षीरसागर को उनके घर पर उनके खेत में काम करने के साथ-साथ पढ़ाया। ज्योतिराव के साथ अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करे के बाद उनकी आगे की पढाई उनके दोस्तों सखाराम यशवंत परांजपे और केशव शिवराम भावलकर की जिम्मेदारी थी। उन्होंने खुद को दो टीचर ट्रेनिंग प्रोग्राम में नामांकित किया। पहला संस्थान अहमदनगर में एक अमेरिकी मिशनरी, सिंथिया फर्रार द्वारा संचालित संस्थान में था, और दूसरा पुणे में एक सामान्य स्कूल में था। सावित्रीबाई पहली भारतीय महिला टीचर और प्रिंसिपल थीं। सावित्रीबाई और उनके पति ने 1848 में भिडे वाडा में पुणे में पहले आधुनिक भारतीय लड़कियों के स्कूल में से एक की स्थापना की। उन्होंने जाति और लिंग के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव और अनुचित व्यवहार को खत्म करने के लिए काम किया।
सावित्रीबाई फूले और उनके पुत्र यशवंत ने 1897 में नालासोपारा के आसपास के क्षेत्र में बुबोनिक प्लेग की तीसरी महामारी से प्रभावित लोगों के इलाज के लिए एक क्लिनिक खोला। क्लिनिक को पुणे के बाहरी इलाके में संक्रमण मुक्त क्षेत्र में स्थापित किया गया था। पांडुरंग बाबाजी गायकवाड़ के बेटे को बचाने की कोशिश में सावित्रीबाई की वीरतापूर्ण मृत्यु हुई। यह जानने के बाद कि गायकवाड़ के बेटे मुंधवा के बाहर महार बस्ती में प्लेग के कॉन्टेक्ट में आए थे। सावित्रीबाई फुले उन्हें वापस अस्पताल ले गईं। इसमें सावित्रीबाई फुले प्लेग की चपेट में आ गईं और 10 मार्च 1897 को रात 9:00 बजे उनकी मृत्यु हो गई।