राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि शील और स्नेह से रामजी ने मिथिला और अवध को जीता है, और बल प्रयोग से राम जी लंका को जीतते हैं। मिथिला नगरी है मुक्ति दशा, तो अयोध्या है मुमुक्षु दशा। तो लंका क्या है? लंका है बद्ध दशा। लंका का राजा है दशानन, अयोध्या के राजा हैं दशरथ। एक के साथ आनन शब्द है, तो दूसरे के साथ रथ शब्द है। दशानन, दशरथ। दशानन का जो नगर है लंका, वह देहवादियों का नगर है। मतलब देह को ही सब कुछ मानने वाले लोग। लंका में तो असुर रहते हैं, असुर अर्थात् जिनकी देहात्म बुद्धि है। रावण तो मूर्तिमान मोह है। अयोध्या यानि मुमुक्षु दशा, दशरथ वहाँ के राजा है। यह दस इन्द्रियों वाला देह का जो रथ है, उन पर दशरथ का नियंत्रण है। मिथिला तो विदेह नगर है, जहां देह भाव से ऊपर उठे हुये लोग हैं, मुक्त है। जनक परम ज्ञानी हैं। जहां परम ज्ञानी रहते हैं, वहां भक्ति प्रगट होती है। यह भक्ति है सीता। जहां भक्ति होगी, सीता होगी, वहां राम को न्यौता नहीं देना पड़ेगा। सीता जी मूर्तिमान भक्ति हैं। वह राम जी को अपनी नगरी में खींच लाती है। याद रहे जहां भक्ति होगी, वहां राम जी खींचे चले आयेंगे। लक्ष्मी के उपभोग का जीव को अधिकार नहीं है, लक्ष्मी का उपयोग जीव कर सकता है। उपयोग में योग शब्द लगा हुआ है, धन का सद् कार्यों में और अति आवश्यक कार्यों में उपयोग करना चाहिये, धन का दुरूपयोग मत करो, कल्याण होगा। धन का मोह छूटने पर प्रभु-भजन शुरू होता है। लक्ष्मी चंचला है, वे कहीं स्थिर नहीं रहती, केवल नारायण के पास ही स्थिर रहती हैं। इसलिए अखण्ड लक्ष्मी का वास हमारे घर में हो, अगर ऐसी भावना है तो श्री लक्ष्मीनारायण, श्री सीताराम, श्री राधाकृष्ण की आराधना करना चाहिये। लक्ष्मी तभी मनुष्य को छोड़कर जाती है, जब मनुष्य सम्पत्ति का दुरूपयोग करता है। नीति से जो धन प्राप्त हो वह लक्ष्मी है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।