लखनऊ। सेवरही विकास खंड दुदही के दो दर्जन से अधिक गांवों में किसानों ने हल्दी की खेती को गन्ने के विकल्प के रूप में अपनाया है। यहां की हल्दी की देश के कई भागों में मांग है। दूसरी ओर मंडी न होने के कारण किसानों का हक बिचौलिए डकार जाते हैं। इसके चलते हल्दी की चमक के बीच किसानों की किस्मत धुंधली पड़ी है। यदि इसे कुटीर उद्योग का दर्जा मिले व मंडी स्थापित हो जाए तो हल्दी उद्योग को पंख लग सकते हैं।
पहले इस क्षेत्र में अंग्रेजों द्वारा किसानों से जबरन नील की खेती करवाई जाती थी। बाद में सेवरही, कठकुइयां व पडरौना में चीनी मिल स्थापित होने पर किसानों का रुझान गन्ने की खेती की तरफ बढ़ा। पडरौना व कठकुइयां चीनी मिलें बंद हो गईं तो कुछ किसानों ने प्रयोग के तौर पर हल्दी की खेती प्रारंभ कर दी। यह लाभकारी साबित हुई तो मैहरवा, मिश्रौली, तिलंगवा पट्टी, बैरिया, खैरवा, बांसगांव, मडूरही, ठाढ़ीभार, पृथ्वीपुर, दुबौली, चाफ, इन्नर पट्टी, विजयपुर, देवीपुर, गोड़रिया, कठकुइयां, सरगटिया, हीरासोती, अमवा, रेहड़ा आदि गांवों के किसानों ने हल्दी का व्यापक उत्पादन प्रारंभ कर दिया। पक कर तैयार होने के बाद खोदाई कर हल्दी को लोहे की कड़ाही में उबालकर जमीन पर फैला दिया जाता है। इस पर गन्ने की पत्तियां व पुआल आदि डालकर झुलसाया जाता है, ताकि पतली-पतली जड़ें जल जाएं। फिर हाथ से मसलकर छिलके छुड़ाए जाते हैं। तत्पश्चात सुखाया जाता है। इसके बाद मशीन द्वारा चमक लाने तक पालिश की जाती है। तैयार हल्दी कानपुर, आगरा, दिल्ली, मुजफ्फरपुर, पटना तथा दरभंगा आदि बाजारों में भेजी जाती है।