श्रीनगर के सबसे पुराने चर्च में फिर लौटेगी रौनक…
जम्मू-कश्मीर। श्रीनगर का सबसे पुराना सेंट ल्यूक्स चर्च इस साल क्रिसमस से पहले अपना खोया हुआ गौरव वापस पाने के लिए पूरी तरह तैयार है। 90 के दशक में आतंकवाद के कारण बंद हुए चर्च के नवीकरण का कार्य जोरों से जारी है। चर्च की छत को प्रसिद्ध कश्मीरी खतमबंद (लकड़ी पर नक्काशी किए गए टुकड़े) के साथ फिर से डिजाइन किया गया है। राज मिस्त्री, बढ़ई, कारीगर और मजदूर दशकों से खस्ता हालत में पड़ी पत्थर और ईंट की चिनाई वाली संरचना को बहाल करने की कोशिश में व्यस्त हैं। श्रीनगर के डलगेट इलाके में स्थित सदियों पुराने चर्च का जीर्णोद्धार कार्य सरकार द्वारा प्रायोजित वास्तुकला और विरासत का संरक्षण और रखरखाव योजना के तहत किया गया है। जानकारी के मुताबिक राजमिस्त्री इमारत की ईंटों के बीच की जगह को उसके मूल आकार में बहाल करने के लिए उसके निर्माण के दौरान इस्तेमाल की गई समान सामग्री से भरेंगे ताकि यह चर्च वैसा ही दिखे जैसे पहले देखने को मिलता था। बहाली प्रक्रिया में शामिल एक कारीगर ने बताया कि कश्मीर के प्रसिद्ध दिवर पत्थरों का उपयोग करके फर्श का नवीनीकरण किया जाएगा।जानकारी के अनुसार 1990 के दशक तक चर्च के द्वार खुले रहते थे और ईसाई समुदाय के सैकड़ों सदस्य यहां नियमित प्रार्थना करते थे। क्रिसमस पर यहां विशाल सभा का भी आयोजन होता था, लेकिन आतंकवाद शुरू होने के बाद चर्च के द्वार बंद हो गए थे। डॉ. अर्नेस्ट और डॉ आर्थर नेवे द्वारा बनाई गई आधारशिलाए ‘द ग्लोरी ऑफ गॉड’ और ‘एज ए विटनेस टू कश्मीर’ को 12 सितंबर 1896 को द बिशप ऑफ लाहौर द्वारा समर्पित किया गया था। गौरतलब है कि आतंकवाद के कारण चर्च के बंद होने से प्रोटेस्टेंट समुदाय के सदस्यों ने श्रीनगर के सोनवार में अत्यधिक सुरक्षित चर्च लेन में प्रार्थना करने के लिए प्रेरित किया। सरकार द्वारा शुरू किए गए जीर्णोद्धार कार्यों ने उनकी उम्मीदों को नया रूप दिया है कि सबसे पुराने चर्च को फिर से भक्तों के लिए खोल दिया जाएगा।कोशिश की जा रही है कि इस क्रिसमस से पहले कार्य पूरा होगा और दशकों से बंद पड़े चर्च में रौनक लौट पाएगी। इसके अलावा पड़ोस के स्थानीय लोगों को भी वो दिन याद आते हैं जब चर्च में रोजाना प्रार्थना की जाती थी।