लाइफस्टाइल। आजकल की जीवनशैली ने लोगों के जीवन पर बुरा प्रभाव डाला है। सुबह जागने से लेकर रात में सोने तक लोग कई ऐसी गलत एक्टिविटी में शामिल होते हैं, जिसके कारण उनके मस्तिष्क और शरीर पर असर पड़ता है। कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी परेशानी हो जाती है। इन्हीं गलत गतिविधियों में से एक फोन की लत है।
लोग अपने मोबाइल फोन से इस कदर जुड़ चुके हैं उन्हें सुबह उठते ही सबसे पहले अपना फोन चेक करना होता है। बार-बार फोन चेक करने की आदत के कारण उनके मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। सिंगापुर मैनेजमेंट यूनिवर्सिटी ने बार-बार स्मार्टफोन चेक करने के कारण दिमाग पर होने वाले असर पर शोध किया। शोध के मुताबिक हर उम्र के लोगों का स्क्रीन टाइम बढ़ता जा रहा है और बार बार फोन चेक करना उतना ही खतरनाक होता जा रहा है।
आइफोन उपयोगकर्ताओं पर हुआ शोध :-
ब्रिटिश जर्नल ऑफ साइकोलॉजी में छपी शोध रिपोर्ट के अनुसार, बार-बार फोन चेक करने से दैनिक जीवन में आने वाली छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान निकालने की क्षमता को कम कर सकता है। फोन चेक करने की आदत के कारण प्रॉब्लम सॉल्विंग एटीट्यूड को कमजोर बना सकता है।
अध्ययन में पता चला कि लोग छोटी छोटी समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए फोन का इस्तेमाल करने लगे हैं। चाहे उन्हें बोरियत कम करनी हो या टाइम पास करना हो, वह अपने स्मार्टफोन में व्यस्त हो जाते हैं। इस कारण उनका मस्तिष्क पर कंट्रोल कम होता जा रहा है और ध्यान भटकने, काम अधूरे छूटने जैसी स्थिति बढ़ने लगी है। स्मार्टफोन के इस्तेमाल की आदत के कारण लोग बात करते करते शब्द भूलने लगते हैँ।
बात करते समय भूलने लगते हैं शब्द :-
इस शोध के प्रमुख शोधकर्ता एंड्री हैरटैंटो की मानें तो भले ही स्मार्टफोन ने कुछ कामों का आसान बना दिया है लेकिन अब लोग अनजाने में बिना आवश्यकता के भी स्मार्टफोन को चेक करने के आदी हो गए हैं। अध्ययन के लिए यूनिवर्सिटी ने आईफोन उपयोगकर्ताओं को चुना। इन लोगों के मोबाइल इस्तेमाल करने के तरीके, समय और कितनी बार मोबाइल का उपयोग करते हैं, इसकी जांच की गई। एक हफ्ते तक ऐप के जरिए उनके मोबाइल की मॉनिटरिंग की गई और पाया गया कि बार बार फोन चेक करने वाले लोगों के बहुत से काम अधूरे रह जाते हैं। इसका कारण उनका ध्यान केंद्रित न हो पाना है। ऐसे लोग बातचीत के दौरान सही शब्दों का उपयोग नहीं कर पाते, क्योंकि वह बात करते करते शब्द भूल जाते हैं।
बच्चों में मायोपिया का खतरा :-
स्मार्टफोन के इस्तेमाल से बच्चों में मायोपिया का खतरा भी बढ़ता है। जर्नल आफ मेडिकल इंटरनेट रिसर्च में छपी रिपोर्ट के मुताबिक स्मार्टफोन के अधिक इस्तेमाल से दुनियाभर में 5 से 8 वर्ष की आयु के 49.8 फीसदी बच्चे मायोपिया के शिकार हो सकते हैं। स्मार्टफोन के अधिक उपयोग से आंखों की रोशनी भी जा सकती है और एस्थेनोपिया जैसी बीमारी भी हो सकती है।